भारत होगा एनीमिया मुक्त, हीमोग्लोबिन के लिए गर्भवती महिलाओं को दी जाएगी एफसीएम दवा

भारत होगा एनीमिया मुक्त, हीमोग्लोबिन के लिए गर्भवती महिलाओं को दी जाएगी एफसीएम दवा

सेहतराग टीम

एनीमिया देश में एक बड़ी समस्या है। लंबे समय से एनीमिया को दूर करने के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। गर्भवती महिलाओं को निशुल्क आयरन की गोली भी उपलब्ध कराई जाती हैं। फिर भी समस्या दूर होती नहीं नजर आ रही है। इसके मद्देनजर एम्स के डॉक्टरों ने एनीमिया नियंत्रण के लिए चलाए जा रहे राष्ट्रीय कार्यक्रम में बदलाव करने व हीमोग्लोबिन की कमी से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को आयरन की गोली की जगह एफसीएम( फैरिक कार्बोक्सी माल्टोज) दवा देने की सिफारिश की है। यह दवा इंजेक्शन के रुप में आती है। डॉक्टरों का कहना है कि यह दवा सिर्फ एक बार लेनी होगी। उनका दावा है कि यह दवा देश को एनीमिया मुक्त करने में बड़ी मददगार साबित होगी।

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एनीमिया के मामलों में हर साल तीन फीसद कमी लाने का लक्ष्य- सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ.पुनीत मिश्रा ने कहा कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में ही एनीमिया मुक्त भारत के लिए पहल की थी। इसके तहत एनीमिया के मामलों में हर साल तीन फिसद कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है। इस अभियान में एम्स के सामुदायिक चिकित्सा विभाग पर सरकार ने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। इसके तहत विभाग को एनीमिया नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय उत्कृष्टता और उन्नत अनुसंधान केंद्र घोषित किया गया है। इसके तहत संस्थान के बल्लभगढ़ स्थित केंद्र में गर्भवती महिलाओं पर एफसीएम दवा देकर अध्ययन किया गया है। एम्स के अनुसार यह अध्ययन सामुदायिक चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ शशि कांत के नेतृत्व में किया गया है।  

डॉ. पुनीत मिश्रा ने बताया कि यह दवा कैनुला के माध्यम से नसों में दी जाती है। यह देखा गया है कि यह दवा देने के बाद गर्भवती महिलाओं में हिमोग्लोबिन के स्तर में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ उसकी स्थिरता बनी रहती है। इसलिए आयरन की गोली के मुकाबले यह ज्याद असरदार है। उन्होंने बताया कि यह एक नई दवा है, जिसका इस्तेमाल खून की कमी वाले रोगों के इलाज में किया जाता है।

क्यों जरुरी है यह दवा- एम्स के डॉक्टर कहते है कि एनीमिया नियंत्रण के लिए साल 1970 से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। फिर भी साल 1998-99 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-2 के अनुसार उस वक्त 49.7 फीसद गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थी। साल 2015-16 के सर्वे के अनुसार भी 50.3 फीसद गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित है। इससे स्पष्ट है कि एनीमिया पीड़ित महिलाओं की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। कई शोध में यह बात साबित हो चुकी है कि हीमोग्लोबिन की मात्रा में एक ग्राम प्रति डेसीलीटर की बढ़ोत्तरी से मातृ मृत्यु की आशंका 25 फीदस कम हो जाती है। गर्भवती महिलाओं के एनीमिया से पीड़ित होने पर गर्भस्थ शिशु का विकास भी प्रभावित होता है और बच्चे भी एनीमिया से पीड़ित होते है। यही वजह है कि डॉक्टर एफसीएम दवा के इस्तेमाल की जरुरत बता रहे हैं।

यह दवा भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका समेत कई देशों में गर्भवती महिलाओँ को दी जा रही है। इस विषय पर एम्स के डॉक्टर कहते है कि संस्थान के सामुदायिक चिकित्सा विभाग द्वारा अध्ययन करने के बाद सरकार से इसके इस्तेमाल के लिए सिफारिश की गई है। उम्मीद है कि सरकार आने वाले दिनों में इसे लागू भी करेगी। अमेरिका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया व यूरोप में गर्भवस्था के दूसरे व तीसरे तिमाही में गर्भवती महिलाओं के इस्तेमाल के लिए इस दवा को स्वीकृति प्राप्त है। लेकिन भारत में इस दवा को देने का प्रावधान नहीं है। 

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